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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
महाबली हनुमान से अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों का वरदान
प्राप्त करने के लिए अपार भक्ति और सतत साधना की आवश्यकता होती है. कहते हैं कि
तपस्या जितनी गहरी होती है. फल की प्राप्ति उतनी ही सुनिश्चित होती जाती है. हम
आपको बताने वाले हैं कि आखिर कैसे मिलती हैं ये आठ चमत्कारी सिद्धियां और नौ
निधियां...
सिद्धियों
और निधियों की प्राप्ति केवल उन्हीं भक्तराज हनुमान की शरण में जाने से संभव है.
जानकारों की मानें तो जीवन में सिद्धियों और निधियों का योग बनाने में ग्रहों का
भी विशेष महत्व है इसलिए आज हम आपको कुंडली की उन ग्रह-स्थितियों के बारे में भी
बताएंगे जो सिद्धियों और निधियों की प्राप्ति में आपकी मददगार हो सकती हैं.
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता (हनुमान ) |
आठ प्रमुख सिद्धियाँ | Aath Siddhia | Ashta Siddhia
| Ashta Siddhi | Siddhia
सिद्धि अर्थात
पूर्णता की प्राप्ति होना व सफलता की अनुभूति मिलना. सिद्धि को प्राप्त करने का
मार्ग एक कठिन मार्ग हो ओर जो इन सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है वह जीवन की
पूर्णता को पा लेता है. असामान्य कौशल या क्षमता अर्जित करने को 'सिद्धि' कहा गया है. चमत्कारिक
साधनों द्वारा 'अलौकिक शक्तियों को पाना जैसे - दिव्यदृष्टि, अपना आकार छोटा कर लेना, घटनाओं की स्मृति प्राप्त कर लेना इत्यादि. 'सिद्धि' इसी अर्थ में
प्रयुक्त होती है.
शास्त्रों में अनेक
सिद्धियों की चर्चा की गई है और इन सिद्धियों को यदि नियमित और अनुशासनबद्ध रहकर
किया जाए तो अनेक प्रकार की परा और अपरा सिद्धियाँ प्राप्त कि जा सकती है.
सिद्धियाँ दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी
अपरा. यह सिद्धियां इंद्रियों के नियंत्रण और व्यापकता को दर्शाती हैं. सब प्रकार
की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियाँ अपरा सिद्धियां कहलाती है
. मुख्य सिद्धियाँ आठ प्रकार की कही गई हैं. इन सिद्धियों को पाने के उपरांत साधक
के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं रह जाता.
सिद्धियां क्या हैं
व इनसे क्या हो सकता है इन सभी का उल्लेख मार्कंडेय पुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण
में प्राप्त होता है जो इस प्रकार है:- अणिमा लघिमा गरिमा प्राप्ति:
प्राकाम्यंमहिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वंच सर्वकामावशायिता:।।
यह आठ मुख्य
सिद्धियाँ इस प्रकार हैं:-
अणिमा सिद्धि | Anima Siddhi
इस
सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं।
इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी तब
किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके
अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था।यह सिद्धि यह वह सिद्धि है, जिससे युक्त हो कर व्यक्ति सूक्ष्म रूप धर कर एक
प्रकार से दूसरों के लिए अदृश्य हो जाता है. इसके द्वारा आकार में लघु होकर एक अणु
रुप में परिवर्तित हो सकता है. अणु एवं परमाणुओं की शक्ति से सम्पन्न हो साधक वीर
व बलवान हो जाता है. अणिमा की सिद्धि से सम्पन्न योगी अपनी शक्ति द्वारा अपार बल
पाता है. अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।
महिमा सिद्धि | Mahima Siddhi
इस
सिद्धि के बल पर हनुमान ने कई बार विशाल रूप धारण किया है। अपने को बड़ा एवं विशाल बना लेने की क्षमता को महिमा कहा जाता है.
जब हनुमानजी समुद्र पार करके
लंका जा रहे थे, तब
बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को
परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था। इस सिद्धि से सम्पन्न होकर साधक प्रकृति को विस्तारित करने में सक्षम होता है. जिस प्रकार केवल ईश्वर ही अपनी इसी सिद्धि से ब्रह्माण्ड का विस्तार करते हैं उसी प्रकार साधक भी इसे पाकर उन्हें जैसी शक्ति भी पाता है.यह आकार को विस्तार देती है विशालकाय स्वरुप को जन्म देने में सहायक है.
इसके अलावा माता सीता को
श्रीराम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए
स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।
गरिमा सिद्धि | Garima Siddhi
इस सिद्धि से मनुष्य अपने शरीर को जितना चाहे, उतना भारी बना सकता है. इस
सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं। यह सिद्धि साधक को अनुभव कराती है कि उसका वजन या भार उसके अनुसार बहुत अधिक बढ़ सकता है जिसके द्वारा वह किसी के हटाए या हिलाए जाने पर भी नहीं हिल सकता
गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी
ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो
गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारक करके
रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ से
रास्ते में पड़ी हुई है, तब
भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने
कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद
भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन
पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस
प्रकार भीम का घमंड टूट गया।
लघिमा सिद्धि | Laghima Siddhi
इस
सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं
भी आ-जा सकते हैं। लघिमा सिद्धि में साधक स्वयं को अत्यंत हल्का अनुभव करता है. इस दिव्य महासिद्धि के प्रभाव से योगी सुदूर अनन्त तक फैले हुए ब्रह्माण्ड के किसी भी पदार्थ को अपने पास बुलाकर उसको लघु करके अपने हिसाब से उसमें परिवर्तन कर सकता है.
जब हनुमानजी अशोक वाटिका में
पहुंचे,
तब वे अणिमा और
लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे।
इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।
प्राप्ति सिद्धि | Prapti Siddhi
इस
सिद्धि की मदद से हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। कुछ भी निर्माण कर लेने की क्षमता इस सिद्धि के बल पर जो कुछ भी पाना चाहें उसे प्राप्त किया जा सकता है. पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने
वाले समय को देख सकते हैं।
रामायण में इस सिद्धि के उपयोग
से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता
सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।
इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक जिस भी किसी वस्तु की इच्छा करता है, वह असंभव होने पर भी उसे प्राप्त हो जाती है.
जैसे रेगिस्तान में प्यासे को पानी प्राप्त हो सकता है या अमृत की चाह को भी पूरा
कर पाने में वह सक्षम हो जाता है केवल इसी सिद्धि द्वारा ही वह असंभव को भी संभव
कर सकता है.
प्राकाम्य सिद्धि | Prakamya Siddhi
इसी
सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं कोई भी रूप धारण कर लेने की क्षमता प्राकाम्य सिद्धि की प्राप्ति है. इसके सिद्ध हो जाने पर मन के विचार आपके अनुरुप परिवर्तित होने लगते हैं. और
मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि में साधक अत्यंत शक्तिशाली शक्ति का अनुभव करता है. इस सिद्धि को पाने के बाद मनुष्य जिस वस्तु कि इच्छा करता है उसे पाने में कामयाब रहता है. व्यक्ति चाहे तो आसमान में उड़ सकता है और यदि चाहे तो पानी पर चल सकता है.
इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक
युवा ही रहेंगे। साथ ही, वे
अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को कारण कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी
वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं।
इस सिद्धि की मदद से ही
हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति को चिरकाल का प्राप्त कर लिया है।
ईशिता सिद्धि | Ishta Siddhi
इस
सिद्धि की मदद से हनुमानजी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं। हर सत्ता को जान लेना और उस पर नियंत्रण करना ही इस सिद्धि का अर्थ है
ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी
ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक समस्त प्रभुत्व और अधिकार प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है. सिद्धि प्राप्त होने पर अपने आदेश के अनुसार किसी पर भी अधिकार जमाय अजा सकता है. वह चाहे राज्यों से लेकर साम्राज्य ही क्यों न हो.
इस सिद्धि को पाने पर साधक ईश रुप में परिवर्तित हो जाता है. इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी
वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा। साथ ही, इस
सिद्धि से हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।
वशिता सिद्धि | vashita siddhi
जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण पा लेने की क्षमता को वशिता या वशिकरण कही जाती है. इस
सिद्धि के प्रभाव से हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं। इस सिद्धि के द्वारा जड़, चेतन, जीव-जन्तु, पदार्थ- प्रकृति, सभी को स्वयं के वश में किया जा सकता है. इस सिद्धि से संपन्न होने पर किसी भी प्राणी को अपने वश में किया जा सकता है.
वशित्व के कारण हनुमानजी किसी
भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमान के वश में आने के बाद
प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। इसी के प्रभाव से हनुमानजी अतुलित
बल के धाम हैं।
नौ निधियां :
हनुमान जी प्रसन्न होने पर जो
नव निधियां भक्तों को देते है वो
इस प्रकार है
1. पद्म
निधि : पद्मनिधि
लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान
करता है ।
2. महापद्म
निधि : महाप
निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है ।
3. नील
निधि : निल
निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेजसे संयुक्त होता है। उसकी संपति तीन पीढीतक
रहती है।
4. मुकुंद
निधि : मुकुन्द
निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।
5. नन्द
निधि : नन्दनिधि
युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है ।
6. मकर
निधि : मकर
निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है ।
7. कच्छप
निधि : कच्छप
निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है।
8. शंख
निधि : शंख निधि एक पीढी के लिए होती है।
9. खर्व निधि : खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रीत फल दिखाई
देते हैं ।
दस गौण
सिद्धियां :
इसके
अलावा भगवत पुराण में भगवान कृष्ण ने दस गौण सिद्धियों
का वर्णन और किया है जो निम्न प्रकार है-
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